Pitru Tarpan Mantra in Sanskrit (पितृ तर्पण मन्त्र) तर्पण विधि DailyHomeStudy
हमारे रिश्तेदार जो अपना शरीर छोड़ इस दुनिया को छोड़ देते हैं। उनकी आत्मा की शांति के लिए पितृ पक्ष में तर्पण-श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से। ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दिनों में यमराज आत्मा को मुक्त करते हैं। ताकि वे अपने परिवार के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में पितरों को प्रणाम करने से पितृ दोष दूर होता है। ज्योतिष शास्त्र में पितृ दोष को अशुभ फल देने वाला माना गया है। इसलिए श्राद्ध में पितरों को प्रणाम करने से पितृ दोष से आने वाली परेशानियां दूर होती हैं और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस वर्ष पितृ पक्ष 20 सितंबर 2021 से शुरू होकर 6 अक्टूबर 2021 को समाप्त होगा लेकिन 26 सितंबर को पितृ पक्ष की कोई तिथि नहीं है।
तर्पण विधि
प्रातःकाल पूर्व दिशा की और मुँह कर बायें और दाहिने हाथ की अनामिका अंगुली में पवित्री (पैंती) धारण करें। यज्ञोपवीत को सव्य कर लें। तीन कुशाओं को बाँधकर ग्रन्थी लगाकर कुशाओं का अग्रभाग पूर्व में रखते हुए दाहिने हाथ में जौ, जल, और अक्षत लेकर संकल्प पढ़ें।
ऊँ विष्णुः विष्णुः विष्णुः। हरि: ॐ तत्सदद्यैतस्य श्रीब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेतवाराहकल्पे
वैवस्वतमन्वन्तरे अष्टाविंशतितमे कलियुगे कलिप्रथमचरणे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे
भारतवर्षे आर्यावर्तैकदेशे अमुकसंवत्सरे अमुकमासे अमुकपक्षे अमुकतिथौ अमुकवासरे
अमुकगोत्रोत्पन्न: अमुकशर्मा (वर्मा, गुप्त:) अहं श्रुति-स्मृति-पुराणोक्त-फलप्राप्त्यर्थं पितृतर्पणं करिष्ये।
तदनन्तर एक तांबे अथवा चांदी के पात्र में सफेद चन्दन, चावल, सुगन्धित पुष्प और तुलसीदल रखें, फिर उस पात्र के ऊपर एक हाथ या
प्रादेश मात्र लम्बे तीन कुश रखें जिनका अग्रभाग पूर्व की ओर रहे। इसके बाद उस पात्र में तर्पण के लिए जल भर दें। फिर उसमें रखे हुए तीनों कुशों को तुलसी सहित सम्पुटाकार दायें हाथ में लेकर बायें हाथ से ढक लें और निम्नाङि्कत मंत्र पढ़ते हुए देवताओं का आवाहन करें।
ऊँ विश्वेदेवास ऽआगत श्रृणुता म ऽइम हवम्। एदं बर्हिनिषीदत॥
(शु. यजु. 7।34)
विश्वेदेवाः शृणुतेम हवं मे ये ऽअन्तरिक्षे य उप द्यवि
ष्ठ।
येऽअग्निजिह्नाऽउत वा यजत्राऽआसद्यास्मिन्वर्हिषि मादयद्ध्वम्॥
(शु. यजु. 33।53)
आगच्छन्तु
महाभागा विश्वेदेवा महाबलाः।
ये तर्पणेऽत्रा विहिताः
सावधाना भवन्तु ते॥
इस प्रकार आवाहन कर कुश का आसन दें और उन पूर्वाग्र कुशों द्वारा दायें हाथ की समस्त अङ्गुलियों के अग्रभाग अर्थात् देवतीर्थ से ब्रह्मादि देवताओं के लिए पूर्वोक्त पात्र में से एक-एक अञ्जलि चावल मिश्रित जल लेकर दूसरे पात्र में गिरावें और निम्नाङि्कत रूप से उन-उन देवताओं के नाम मन्त्र पढ़ते रहें –
देवतर्पण
ऊँ ब्रह्मा तृप्यताम्। ऊँ विष्णुस्तृप्यताम्। ऊँ
रुद्रस्तृप्यताम्।
ऊँ प्रजापतिस्तृप्यताम्। ऊँ देवास्तृप्यन्ताम्। ऊँ छन्दांसि
तृप्यन्ताम्।
ऊँ वेदास्तृप्यन्ताम्। ऊँ ऋषयस्तृप्यन्ताम्। ऊँ
पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम्।
ऊँ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्। ऊँ इतराचार्यास्तृप्यन्ताम्। ऊँ
संवत्सरः सावयवस्तृप्यताम्। ऊँ देव्यस्तृप्यन्ताम्। ऊँ अप्सरसस्तृप्यन्ताम्।
ऊँ देवानुगास्तृप्यन्ताम्। ऊँ नागास्तृप्यन्ताम्। ऊँ
सागरास्तृप्यन्ताम्।
ऊँ पर्वतास्तृप्यन्ताम्। ऊँ सरितस्तृप्यन्ताम्। ऊँ
मनुष्यास्तृप्यन्ताम्।
ऊँ यक्षास्तृप्यन्ताम्। ऊँ रक्षांसि तृप्यन्ताम्। ऊँ पिशाचास्तृप्यन्ताम्।
ऊँ सुपर्णास्तृप्यन्ताम्। ऊँ भूतानि तृप्यन्ताम्। ऊँ
पशवस्तृप्यन्ताम्।
ऊँ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम्। ऊँ ओषधयस्तृप्यन्ताम्।ᅠऊँᅠभूतग्रामश्चतु-
र्विधस्तृप्यताम्।
ऋषि तर्पण
निम्नाङि्कत मन्त्र वाक्यों से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अञ्जलि जल दें-
ऊँ मरीचिस्तृप्यताम्। ऊँ अत्रिास्तृप्यताम्। ऊँ अङि्गरास्तृप्यताम्।
ऊँ पुलस्त्यस्तृप्यताम्। ऊँ पुलहस्तृप्यताम्। ऊँ क्रतुस्तृप्यताम्।
ऊँ वसिष्ठस्तृप्यताम्। ऊँ प्रचेतास्तृप्यताम्। ऊँ भृगुस्तृप्यताम्।
ऊँ नारदस्तृप्यताम्॥
दिव्य मनुष्य तर्पण-
इसके बाद जनेऊ को माला की भांति गले में धारण करके (अर्थात् निवीती हो) पूर्वोक्त कुशों हो दायें हाथ की कनिष्ठिका के मूल-भाग में उत्तराग्र रखकर स्वयं उत्तराभिमुख हो निम्नाङि्कत मन्त्र वचनों को दो-दो बार पढ़ते हुए दिव्य मनुष्यों के लिए दो-दो अञ्जलि यवसहित जल प्राजापत्यतीर्थ (कनिष्ठिका के मूल-भाग) से अर्पण करें।
ऊँ सनकस्तृप्यताम्॥2॥ ऊँ सनन्दनस्तृप्यताम्॥2॥
ऊँ सनातनस्तृप्यताम्॥2॥ ऊँ कपिलस्तृप्यताम्॥2॥
ऊँ आसुरिस्तृप्यताम्॥2॥ ऊँ वोढुस्तृप्यताम्॥2॥
ऊँ पञ्चशिखस्तृप्यताम्॥2॥
दिव्य पितृ तर्पण-
तत्पश्चात् उन कुशों को द्विगुण भुग्न करके उनका मूल और अग्रभाग दक्षिण की ओर किये हुए ही उन्हें अंगूठे और तर्जनी के बीच मेंरखे और स्वयं दक्षिणाभिमुख हो बायें घुटने को पृथ्वी पर रखकर अपसव्यभाव से (जनेऊ को दायें कंधे पर रखकर) पूर्वोक्त पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर पितृतीर्थ से (अंगूठा और तर्जनी के मध्य भाग से) दिव्य पितरों के लिए निम्नाङि्कत मन्त्र-वाक्यों को पढ़ते हुए तीन-तीन अञ्जलि जल दें ।
ऊँ कव्यवाडनलस्तृप्यताम्
इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै
स्वधा नमः।3॥ ऊँ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं
जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ ऊँ यमस्तृप्यताम्
इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।3॥ ऊँ अर्यमा
तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः।3॥
ऊँ अग्निष्वात्ताः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तेभ्यः स्वधा
नमः।3॥ ऊँ सोमपाः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं
वा) तेभ्यः स्वधा नमः।3॥ ऊँ बर्हिषदः पितरस्तृप्यन्ताम् इदं
सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तेभ्यः स्वधा नमः।3॥
यमतर्पण-
इसी प्रकार निम्नलिखित मन्त्र-वाक्यों को पढ़ते हुए चौदह यमों के लिये भी पितृतीर्थ से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल सहित जल दें ।
ऊँ यमाय नम :॥3॥ऊँ धर्मराजाय नम :॥3॥ ऊँ मृत्युवे नमः॥3॥ ऊँ अन्तकाय नम :॥3॥ ऊँ वैवस्वताय नम :॥3॥ ऊँ कालाय नमः॥3॥ ऊँ सर्वभूतक्षयाय नम :॥3॥ ऊँ औदुम्बराय नम :॥3॥ ऊँ दध्नाय नमः॥3॥ ऊँ नीलाय नम :॥3॥ ऊँ परमेष्ठिने नम :॥3॥ ऊँ वृकोदराय नम :॥3॥ ऊँ चित्रााय नम :॥3॥ ऊँ चित्रागुप्ताय नम :॥3॥
दक्षिण की ओर बैठकर आचमन कर बायाँ घुटना मोड़ जनेऊ तथा उत्तरीय को दाहिने कंधे पर कर पितृतीर्थ तर्जनी के मूल तथा कुशा के अग्र भाग और मूल से तिल सहित प्रत्येक नाम से दक्षिण में तीन-तीन अंजलि देवें। पवित्री दाहिने तथा तीन को बायें हाथ की अनामिका में धारण करें।
मनुष्य पितृ तर्पण
आवाहन (तीर्थों में नहीं करे)
ऊँ उशन्तस्त्वा
निधीमह्युशन्तः समिधीमहि।
उशन्नुशत
आवाह पितॄन्हविषे उत्तवे विषे उत्तवे॥ (यजु. 19।
70)
ॐ आयन्तु नः
पितरः सौम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः ।
अस्मिन्यज्ञे
स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान् । (शुक्ल. मज. 19।58)
तदन्तर अपने पितृगणों का नाम-गोत्र आदि उच्चारण
करते हुए प्रत्येक के लिए पूर्वोक्त विधि से तीन-तीन अञ्जलि तिलसहित जल दे। यथा-
अमुकगोत्राः अस्मत्पिता (बाप) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं (गङ्गा जलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः
अस्मत्पितामहः (दादा) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं
वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्प्रपितामहः
(परदादा) अमुकशर्मा आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै
स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मन्माता अमुकी देवी वसुरूपा
तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा
अस्मत्पितामही (दादी) अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं तलं तस्यै स्वधा
नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्प्रपितामही (परदादी) अमुकी देवी
आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अमुकगोत्रा अस्मत्सापत्नमाता (सौतेली मां) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥2॥
इसके बाद निम्नाङि्कत नौ मन्त्रों को पढ़ते हुए पितृतीर्थ से जल गिराता रहे।
ऊँ उदीरतामवर उत्परास उन्मध्यमाः पितरः सोम्यासः।
असुं यऽ ईयुरवृका ᅠऋतज्ञास्ते नोऽवन्तु
पितरो हवेषु॥ (यजु. 19। 49)
अङि्गरसो नः पितरो नवग्वा ऽअथर्वाणो भृगवः सोम्यासः।
तेषां वयं सुमतो
यज्ञियानामपि भद्रे सौमनसे ᅠस्याम॥
(यजु. 19। 50)
आयन्तु नः पितरः सोम्यासोऽग्निष्वात्ताः पथिभिर्देवयानैः।
अस्मिन्यज्ञे स्वधया मदन्तोऽधिब्रुवन्तु तेऽवन्त्वस्मान्॥ (यजु. 19। 58)
ऊर्जं वहन्तीरमृतं घृतं पयः कीलालं परिह्लुतम्।
स्वधास्थ तर्पयत
मे पितघ्घ्न्। (यजु. 2। 34)
पितृभ्यः स्वधायिभ्यः स्वधा नमः पितामहेभ्यः स्वधायिभ्यः
स्वधा नमः प्रतिपतामहेभ्यः स्वधायिभ्यः
स्वधा नमः।
अक्षन्पितरोऽमीमदन्त पितरोऽतीतृपन्त पितरः पितरः शुन्धध्वम्। (यजु.
19। 36)
ये चेह पितरो ये च नेह यांश्च
विद्म याँ 2 ॥ उ च न प्रविद्म त्वं वेत्थ यति ते जातवेदः
स्वधाभिर्यज्ञँ सुकृतं जुषस्व॥ (यजु. 19। 67)
ऊँᅠमधुᅠव्वाताᅠऋतायतेᅠमधुᅠक्षरन्तिᅠसिन्धवः।ᅠमाध्वीर्नःᅠसन्त्वोषधीः॥(यजु. 13। 28)
ऊँᅠमधुᅠनक्तमुतोषसोᅠमधुमत्पार्थिवप्र
रजः। मधु द्यौरस्तु नः पिता॥ (यजु. 13। 28)
ऊँमधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँऽ2अस्तु सूर्यः। माध्वीर्गावो भवन्तु नः॥ (यजु. 13। 29)
ऊँ मधु। मधु। मधु। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्। तृप्यध्वम्।
फिर नीचे लिखे मन्त्र का पाठ मात्र करे ।
ऊँ नमो वः पितरो रसाय नमो वः पितरः शोषाय नमो वः पितरो जीवाय
नमो वः पितरः स्वधायै नमो वः पितरो घोराय नमो वः पितरो मन्यवे नमो वः पितरः पितरो
नमो वो गृहान्नः पितरो दत्त सतो वः देष्मैतद्वः पितरो वास आधत्त। (यजु. 2। 32)
द्वितीय गोत्रतर्पण-
इसके बाद द्वितीय गोत्र मातामह आदि का तर्पण
करे, यहाँ भी पहले की ही भांति
निम्नलिखित वाक्यों को तीन-तीन बार पढ़कर तिलसहित जल की तीन-तीन अञ्जलियाँ
पितृतीर्थ से दे। यथा –
अमुकगोत्राः अस्मन्मातामहः (नाना) अमुकशर्मा
वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं (गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्प्रमातामहः
(परनाना) अमुकशर्मा रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्वृद्धप्रमातामहः (बूढ़े परनाना) अमुकशर्मा
आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अमुकगोत्रा अस्मन्मातामही (नानी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं
तस्यै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्प्रमातामही (परनानी)
अमुकी देवी रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं
तस्यै स्वधा नमः॥3॥
अमुकगोत्रा अस्मद्वृद्धप्रमातामही (बूढ़ी परनानी) अमुकी देवी आदित्यरूपा
तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै
स्वधा नमः॥3॥
पत्न्यादि तर्पण
अमुकगोत्रा अस्मत्पत्नी (भार्या) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम्
इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मत्सुतः
(बेटा) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मत्कन्या (बेटी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं
जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मत्पितृव्यः (पिता के
भाई) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मन्मातुलः (मामा) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्भ्राता
(अपना भाई) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मत्सापत्नभ्राता (सौतेला भाई) अमुकशर्मा
वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा
अस्मत्पितृभगिनी (बूआ) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा
नमः॥ अमुकगोत्रा अस्मन्मातृभगिनी (मौसी) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं
जलं तस्मै स्वधानमः ॥ 1॥ अमुकगोत्रा अस्मदात्मभगिनी (अपनी
बहिन) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्रा अस्मत्सापत्नभगिनी
(सौतेली बहिन) अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नमः॥1॥ अमुकगोत्राः अस्मच्छ्वशुरः (श्वसुर) अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मद्गुरुः
अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥ अमुकगोत्रा अस्मदाचार्यपत्नी अमुकी देवी वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं
जलं तस्मै स्वधा नमः॥2॥ अमुकगोत्राः अस्मच्छिष्यः अमुकशर्मा
वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
अमुकगोत्राः अस्मत्सखा अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा
नमः॥3॥ अमुकगोत्राः अस्मदाप्तपुरुषः अमुकशर्मा
वसुरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नमः॥3॥
इसके बाद सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो नीचे लिखे
श्लोकों को पढ़ते हुए जल गिरावे ।
देवासुरास्तथा यज्ञा नागा
गन्धर्वराक्षसाः ।
पिशाचा गुह्मकाः
सिद्धाः कूष्माण्डास्तरवः खगाः ॥
जलेचरा भूनिलया
वाय्वाधाराश्च जन्तवः ।
तृप्तिमेते प्रयान्त्वाशु मद्दत्तेनाम्बुनाखिलाः ॥
नरकेषु समस्तेषु
यातनासु च ये
स्थिताः ।
तेषामाप्यायनायैतद् दीयते
सलिलं मया ॥
येऽबान्धवा बान्धवा
वा येऽन्यजन्मनि बान्धवाः ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु ये
चास्मत्तोयकाङि्क्षणः ॥
ऊँ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवाः ।
तृप्यन्तु पितरः
सर्वे मातृमातामहादयः ॥
अतीतकुलकोटीनां सप्तद्वीपनिवासिनाम् ।
आब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु तिलोदकम् ॥
येऽबान्धवा
बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि
बान्धवाः ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया
दत्तेन वारिणा ॥ विष्णुपुराणम्/तृतीयांशः/अध्यायः
11
वस्त्र निष्पीडन
तत्पश्चात् वस्त्र को चार आवृत्ति लपेटकर जल
में डुबावे और बाहर ले आकर निम्नाङि्कत मन्त्र को पढ़ते हुए अपसव्य-भाव से अपने
बायें भाग में भूमि पर उस वस्त्र को निचोड़े। (पवित्राक को तर्पण किये हुए जल में
छोड़ दे। यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो
वस्त्रा-निष्पीडन को नहीं करना चाहिये।) वस्त्र-निष्पीडन का मन्त्र यह है ।
ये चास्माकं कुले जाता अपुत्राा गोत्रिाणो मृताः।
ते गृह्णन्तु
मया दत्तं वस्त्रानिष्पीडनोदकम्॥
भीष्म तर्पण
इसके बाद दक्षिणाभिमुख हो पितृतर्पण के समान ही
जनेऊ अपसव्य करके हाथ में कुश धारण किये हुए ही बालब्रह्मचारी भक्तप्रवर भीष्म के
लिए पितृतीर्थ से तिलमिश्रित जल के द्वारा तर्पण करें। उनके तर्पण का मन्त्र
निम्नाङि्कत है –
वैयाघ्रपदगोत्राय साङ्कृतिप्रवराय च।
गङ्गापुत्राय भीष्माय
प्रदास्येऽहं तिलोदकम्।
अपुत्राय
ददाम्येतत्सलिलं भीष्मवर्मणे॥
अर्घ्यदान-
फिर शुद्ध जल से आचमन करके प्राणायाम करे।
तदनन्तर यज्ञोपवीत बायें कंधे पर करके एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसके मध्यभाग
में अनामिका से षड्दल कमल बनावे और उसमें श्वेत चन्दन, अक्षत, पुष्प
तथा तुलसीदल छोड़ दे। फिर दूसरे पात्र में चन्दन से षड्दल-कमल बनाकर उसमें
पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के
जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्घ्य अर्पण करे। अर्घ्यदान के मन्त्र निम्नाङि्कत
हैं –
ऊँ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं पुरस्ताद्वि सीमतः सुरुचो ब्वेनऽआवः।
स बुध्न्या ऽउपमा ऽअस्य व्विष्ठाः सतश्च योनिमसतश्च व्विवः॥ (शु. य.
13।3)
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ब्रह्माणं पूजयामि॥
ऊँ इदं विष्णुर्विचक्रमे
त्रोधा निदधे पदम्।
समूढमस्यपाँ सुरे स्वाहा॥ (शु.य.
5।15)
ऊँ विष्णवे नमः। विष्णुं पूजयामि॥
ऊँ नमस्ते रुद्र मन्यव ऽउतो त ऽइषवे नम :।
बाहुभ्यामुत ते नमः॥ (शु.
य. 16।1)
ऊँ रुद्राय नमः। रुद्र्रं पूजयामि॥
ऊँ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि।
धियो यो नः प्रचोदयात्॥ (शु.य. 36।3)
ऊँ सवित्रो नमः। सवितारं पूजयामि॥
ऊँ मित्रास्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य सानसि।ᅠद्युम्नं चित्राश्रवस्तमम्॥ (शु. य. 11।62)
ऊँ मित्रााय नमः। मित्रं पूजयामि॥
ऊँ इमं मे व्वरुण श्रुधी हवमद्या च मृडय। त्वामवस्युराचके॥ (शु. य. 21।1)
ऊँ वरुणाय नमः। वरुणं पूजयामि॥
सूर्योपस्थान-
इसके बाद निम्नाङि्कत मन्त्र पढ़कर
सूर्योपस्थान करे –
ऊँ अदृश्रमस्य केतवो विरश्मयो जनाँ॥ 2॥ अनु। भ्राजन्तो ऽअग्नयो यथा। उपयामगृहीतोऽसि सूर्याय त्वा भ्राजायैष ते
योनिः सूर्याय त्वा भ्राजाय। सूर्य भ्राजिष्ठ भ्राजिष्ठस्त्वं देवेष्वसि
भ्राजिष्ठोऽहमनुष्येषु भूयासम्॥ (शु. य. 8।40)
ऊँ
हᅠप्र सः श्चिषञ्सुरन्तरिक्षसद्धोता
व्वेदिषदतिथिर्दुरोणसत्। नृषद्द्वरसदृतसद्वयोमसदब्जा गोजा ऽऋतजा ऽअद्रिजा ऽऋतं
वृहत्॥ (शु. य. 10।24)
इसके पश्चात् दिग्देवताओं को पूर्वादि क्रम से
नमस्कार करे –
ऊँ इन्द्राय नमः’ प्राच्यै॥ ‘ऊँ अग्नये नमः’ आग्नेय्यै॥ ‘ऊँ
यमाय नमः’ दक्षिणायै॥ ‘ऊँ निर्ऋतये नमः’
नैर्ऋत्यै॥ ‘ऊँ वरुणाय नमः’ पश्चिमायै॥ ‘ऊँ वायवे नमः’ वायव्यै॥
ऊँ सोमाय नमः’ उदीच्यै॥
ऊँ
ईशानाय नमः’ ऐशान्यै॥ ‘ऊँ ब्रह्मणे
नमः’ ऊर्ध्वायै॥ ‘ऊँ अनन्ताय नमः’
अधरायै॥
इसके
बाद जल में नमस्कार करें –
ऊँ ब्रह्मणे नमः। ऊँ अग्नये नमः। ऊँ पृथिव्यै नमः। ऊँ ओषधिभ्यो
नमः। ऊँ वाचे नमः। ऊँ वाचस्पतये नमः। ऊँ महद्भ्यो नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ अद्भ्यो
नमः। ऊँ अपाम्पयते नमः। ऊँ वरुणाय नमः॥
मुखमार्जन-
फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढ़कर जल से मुंह धो
डालें-
ऊँ
संवर्चसा पयसा सन्तनूभिरगन्महि मनसा सँ शिवेन।
त्वष्टा सुदत्रो व्विदधातु रायोऽनुमार्ष्टु तन्वो यद्विलिष्टम्॥
(शु.य. 2।24)
विसर्जन-नीचे लिखे मन्त्र पढ़कर देवताओं का विसर्जन
करें-
ऊँ देवा गातुविदो गातुं
वित्त्वा गातुमित।
मनसस्पत ऽइमं देव यज्ञँ
स्वाहा व्वाते धाः॥ (शु. य. 2।21)
समर्पण-निम्नलिखित वाक्य पढ़कर यह तर्पण-कर्म भगवान्
को समर्पित करें-
अनेन
यथाशक्तिकृतेन देवर्षिमनुष्यपितृतर्पणाखयेन कर्मणा भगवान् मम समस्तपितृस्वरूपी
जनार्दनवासुदेवः प्रीयतां न मम।
ऊँ
विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः। ऊँ विष्णवे नमः।