Shlok On Holi In Sanskrit
सद्यः प्रमोदः समुद्धृतः सर्वे लोकाः,
रसं विभाव्य मनसा समर्प्य च।
सख्या नृत्यैः कुसुमैः खेलिता बहुधा,
स्फटिका-पट्टाः पुरतः समर्प्य च।।
सन्ततं विकासं यथा नभसः सौम्यं,
होलिकावज्रेण विधातुमार्गाः।
शांत्या विवर्णा इव पट्टिका माल्या,
आविर्भूताः प्रियाः इव सर्वतः।।
(अनुवादः)
होली, धरती पर सर्व लोगों को हर्ष का मौसम दिखाता है,
रसों को भावनात्मक रूप से अभिव्यक्त करता है।
मित्रता के साथ फूलों के संग अनेक खेले जाते हैं,
स्फटिक की पट्टियों को समर्पित किया जाता है।
आकाश की सुंदरता के तरह स्थितिगत विकास,
होलिका के वज्र से मार्ग निर्धारित किया जाता है।
माल्यों की तरह धरा स्वयं विविध रंगों में रंगी होती है,
सभी तरफ से प्यारी उपस्थितियाँ स्थापित होती हैं।
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