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    Tadvid’dhi praṇipātēna paripraśnēna meaning in Sanskrit| DailyHomeStudy

    Tadvid’dhi praṇipātēna श्लोक श्रीमद्भगवद्गीता के अध्याय से लिया गया है. अध्याय ४ को ज्ञानकर्मसन्यासयोग कहा गया है. यहाँ पर इस श्लोक का हिंदी में अनुवाद, English transliteration के साथ दिया गया है. हम आशा करते है इससे आपको लाभ होगा. श्रीमद्भगवद्गीता [ अध्याय 4 – ज्ञानकर्मसन्यासयोग ] तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया |उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन: ॥34॥ [ अध्याय 4 – ज्ञानकर्मसन्यासयोग ] श्र्लोक 34 Hindi Translation Word by Word यहाँ पर संस्कृत श्लोक का हिंदी में एक-एक शब्द का अनुवाद दिया गया है. शब्दार्थ तत—सत्य; विधि—सीखने की कोशिश करो; प्रणिपतेन—एक आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर; परिप्रष्णेन—विनम्र पूछताछ से; सेवा – सेवा प्रदान करके; upadekṣhyanti– प्रदान कर सकते हैं; ते—तुम्हारे लिए;…

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    क्षान्त्वा भक्तापराधान्, विहसित वदना श्रेयसां या सावित्री Shlok meaning in Hindi

    संसार में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति हो जो लक्ष्मी की कामना न करता हो । राजा, रंक, छोटे, बड़े सभी चाहते हैं कि लक्ष्मीजी सदा उनके घर में निवास करें । लक्ष्मीजी की आराधना करने से पहले मनुष्य को उनके स्वरूप के गूढ़ अर्थ को समझ लेना चाहिए तभी वह उनकी सच्ची आराधना कर सकता है। भगवान विष्णु के चरण दबाती महालक्ष्मीजी 🕉️🚩महालक्ष्मी का जो चित्र हम देखते हैं उसमें वे क्षीरसागर में शेषशय्या पर विराजमान भगवान विष्णु के चरण दबाती हुई दिखाई देती हैं । पुराणों में लक्ष्मीजी का स्थान भगवान विष्णु के हृदय और चरणकमलों में बताया गया है । एक बार भगवान विष्णु की पत्नी भूदेवी…

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    शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: Shlok Meaning in Hindi

    शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनै: |संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि ॥28॥ Shlok Meaning in Hindi शब्दार्थ:- (एवम्) इस प्रकार मतानुसार साधना करने (सóयासयोगयुक्तात्मा) घर त्याग कर या हठ योग करके साधना करने वाले साधक (शुभाशुभफलैः) अपने हित व अहित के फल को जान कर (कर्मबन्धनैः) शास्त्रा विधि रहित साधना जो हठयोग एक स्थान पर बन्ध कर बैठने से (मोक्ष्यसे) मुक्त हो जाएगा। ऐसे (विमुक्तः) शास्त्रा विरुद्ध साधना के बन्धन से मुक्त होकर अर्थात् शास्त्रा विधि अनुसार साधना करके (माम्) मुझसे ही (उपैष्यसि) लाभ प्राप्त करेगा। अर्थात् मेरे पास ही आएगा। अनुवाद:- इस प्रकार, जिसमें समस्त कर्म मुझ भगवान के अर्पण होते हैं- ऐसे संन्यासयोग से युक्त चित्तवाला तू शुभाशुभ फलरूप कर्मबंधन से मुक्त हो…

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    prayatnaadyatamaanastu yogee Shlok Meaning, Anuvad, Bhavarth, Lyrics

     🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४५ प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिष: | अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥45॥ शब्दार्थ:- (तु) इसके विपरीत (यतमानः) शास्त्रा अनुकुल साधक जिसे पूर्ण प्रभु का आश्रय प्राप्त है वह संयमी अर्थात् मन वश किया हुआ प्रयत्नशील(प्रयत्नात्) सत्यभक्ति के प्रयत्न से (अनेकजन्मसंसिद्धः) अनेक जन्मों की भक्ति की कमाई से (योगी) भक्त (संशुद्धकिल्बिषः) पाप रहित होकर (ततः) तत्काल उसी जन्म में (पराम् गतिम्) श्रेष्ठ मुक्ति को (याति) प्राप्त हो जाता है। अनुवाद:- परन्तु प्रयत्नपूर्वक अभ्यास करने वाला योगी तो पिछले अनेक जन्मों के संस्कारबल से इसी जन्म में संसिद्ध होकर सम्पूर्ण पापों से रहित हो फिर तत्काल ही परमगति को प्राप्त हो जाता है।

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    Paarth naiveh naamutr vinaashastasy vidyate Meaning, Bhavarth, Anuvad, Full Shlok

     🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४० श्रीभगवानुवाच | पार्थ नैवेह नामुत्र विनाशस्तस्य विद्यते | न हि कल्याणकृत्कश्चिद्दुर्गतिं तात गच्छति ॥40॥ शब्दार्थ (पार्थ) हे पार्थ! (वास्तव में वास्तव में पथ भ्रष्ट साधक (न) न तो (इह) का बैक्टीरिया (न) न (अमुत्रा) वहां का शिशु है। (तस्य) उसका (विनाशः) ही (विद्याते) गो (हि) निसंदेह (कश्चित) कोई भी व्यक्ति जो (न कल्याणकारी) शब्द स्वांस तक मराडा से आत्म कल्याण के लिए कर्मयोगी है जो योग भ्रष्ट है। है (तात) हे प्रिय तो (दुर्गतिम्) दुर्गति को (गच्छति) गुण प्राप्त है। श्लोक का प्रमाण अध्याय 4 श्लोक 40 में भी। भावार्थ: – गीता जी ने इस श्लोक में 40 में…

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    Kalyāṇa puṇyākr̥taṁ lōkānubhūti: Samā Shlok Meaning, Bhavarth, Anuvaad

     🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४१ कल्याण पुण्याकृतं लोकानुभूति: समा: | शुचिनां श्रीमतं गे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥41॥ शब्दार्थ  प्रप्या—प्राप्त;  पूण्य-कीताम—पुण्यों का;  लोकान – निवास;  उष्ट्वा—निवास के बाद;  अष्टवती—अनेक;  समी—उम्र;  शुचिनाम – धर्मपरायणों का;  श्री-मातम—समृद्धों का;  गेहे—घर में;  योग-भ्रष्टा:—असफल योगी;  अभिजयते—जन्म लेना; अनुवाद:-  धर्मियों के लोक को प्राप्त करने और अनन्त वर्षों तक वहाँ रहने से, योग से गिरा हुआ व्यक्ति पवित्र और समृद्ध के घर में पैदा होता है।

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    Athava Yoginaamev kule bhavati dheemataam Shlok Meaning, Bhavarth, Anuvaad

     श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४२ अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् | एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥42॥ शब्दार्थ  (अथवा) अथवा  (धीमताम्) ज्ञानवान्  (योगिनाम्) योगियोंके  (कुले) कुल में  (भवति) जन्म लेता है।  (एव) वास्तव में  (ईदृशम्) इस प्रकारका  (यत्) जो  (एतत्) यह  (जन्म) जन्म है सो  (लोके) संसारमें  (हि) निःसन्देह  (दुर्लभतरम्) अत्यन्त दुर्लभ है। अनुवाद:-  अथवा वैराग्यवान पुरुष उन लोकों में न जाकर ज्ञानवान योगियों के ही कुल में जन्म लेता है, परन्तु इस प्रकार का जो यह जन्म है, सो संसार में निःसंदेह अत्यन्त दुर्लभ है।

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    tatr tan buddhisanyogan labhate paurvadehikam Shlok MEaning, Anuvaad, Bhavarth in Hindi

     🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४३ तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् | यतते च ततो भूय: संसिद्धौ कुरुनन्दन शब्दार्थ:-  (तत्र) वहाँ  (तम्) वह  (पौर्वदेहिकम्) पहले शरीरमें संग्रह किये हुए  (बुद्धिसंयोगम्) बुद्धिके संयोगको अनायास ही  (लभते) प्राप्त हो जाता है  (च) और  (कुरुनन्दन) हे कुरुनन्दन!  (ततः) उसके पश्चात्  (भूयः) फिर  (संसिद्धौ) परमात्माकी प्राप्तिरूप सिद्धिके लिये  (यतते) प्रयत्न करता है अनुवाद:-   वहाँ उस पहले शरीर में संग्रह किए हुए बुद्धि-संयोग को अर्थात समबुद्धिरूप योग के संस्कारों को अनायास ही प्राप्त हो जाता है और हे कुरुनन्दन! उसके प्रभाव से वह फिर परमात्मा की प्राप्तिरूप सिद्धि के लिए पहले से भी बढ़कर प्रयत्न करता है।

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    poorvaabhyaasen tenaiv hriyate hyavashopi sa Shlok Meaning, Bhavarth, Anuvaad

     🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉  [अध्याय 6 – ध्यानयोग ] श्र्लोक ४४ पूर्वाभ्यासेन तेनैव ह्रियते ह्यवशोऽपि स:। जिज्ञासुरपि योगस्य शब्दब्रह्मातिवर्तते॥ शब्दार्थ:- (सः) वह पथभ्रष्ट साधक  (अवशः) स्वभाव वश विवश हुआ  (अपि) भी  (तेन) उस  (पूर्वाभ्यासेन) पहलेके अभ्यास से  (एव) ही वास्तव में  (ह्रियते) आकर्षित किया जाता है  (हि) क्योंकि  (योगस्य)परमात्मा की भक्ति का  (जिज्ञासुः) जिज्ञासु  (अपि) भी  (शब्दब्रह्म) परमात्मा की भक्ति विधि जो सद्ग्रन्थों में वर्णित है उस विधि अनुसार साधना न करके पूर्व के स्वभाव वश विचलित होकर उस वास्तविक नाम का जाप न करके प्रभु की वाणी रूपी आदेश का  (अतिवर्तते) उल्लंघन कर जाता है।  क्योंकि पूर्व स्वभाववश फिर विचलित हो जाता है।  इसीलिए गीता अध्याय 7 श्लोक 16-17…

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    विश्व की सबसे समृद्ध भाषा कौन सी है

     विश्व की सबसे समृद्ध भाषा कौन सी है अंग्रेजी में  ‘THE QUICK BROWN FOX JUMPS OVER A LAZY DOG’  एक प्रसिद्ध वाक्य है। जिसमें अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर समाहित कर लिए गए, मज़ेदार बात यह है की अंग्रेज़ी वर्णमाला में कुल 26 अक्षर ही उप्लब्ध हैं जबकि इस वाक्य में 33 अक्षरों का प्रयोग किया गया जिसमे चार बार O और A, E, U तथा R अक्षर का प्रयोग क्रमशः 2 बार किया गया है। इसके अलावा इस वाक्य में अक्षरों का क्रम भी सही नहीं है। जहां वाक्य T से शुरु होता है वहीं G से खत्म हो रहा है। अब ज़रा संस्कृत के इस श्लोक को पढिये-…

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