Kalyāṇa puṇyākr̥taṁ lōkānubhūti: Samā Shlok Meaning, Bhavarth, Anuvaad
🕉श्रीमद्भगवद्गीता दैनिक स्वाध्याय 🕉
[अध्याय 6 – ध्यानयोग ]
श्र्लोक ४१
कल्याण पुण्याकृतं लोकानुभूति: समा: | शुचिनां श्रीमतं गे योगभ्रष्टोऽभिजायते ॥41॥
शब्दार्थ
प्रप्या—प्राप्त;
पूण्य-कीताम—पुण्यों का;
लोकान – निवास;
उष्ट्वा—निवास के बाद;
अष्टवती—अनेक;
समी—उम्र;
शुचिनाम – धर्मपरायणों का;
श्री-मातम—समृद्धों का;
गेहे—घर में;
योग-भ्रष्टा:—असफल योगी;
अभिजयते—जन्म लेना;
अनुवाद:-
धर्मियों के लोक को प्राप्त करने और अनन्त वर्षों तक वहाँ रहने से, योग से गिरा हुआ व्यक्ति पवित्र और समृद्ध के घर में पैदा होता है।
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